Translate

Ad Code

Baba Mohan Ram history in hindi wiki | बाबा मोहनराम की सम्पूर्ण कथाये | Updated (2024)

Mohan Ram Baba History in Hindi,

Baba Mohan Ram history in hindi

जय बाबा मोहनराम की 

हेलो दोस्तों, आईये जानते है बहुत ही प्रशिद्ध और बहुत से लोगो के आराध्य श्री बाबा मोहनराम जी के बारे में, जिनका भव्य मंदिर अलवर डिस्ट्रिक्ट के भिवाड़ी शहर में खोली गाँव के पास अरावली के पहाड़ो पे स्थित है | 
बाबा मोहनराम जी को भक्तो ने त्रि-लोक नाथ (इस ब्रह्माण्ड के निर्माता, पालनकर्ता और संहारक) मानते है | बाबा जी की शिक्षा प्रेम, क्षमा, दुसरो की मदद करने, दान, संतोष, आन्तरिक शांति और ईश्वर के प्रति समर्पण पर केन्द्रित है | बाबा जी ने सच्चे सतगुरु के प्रति समर्पण के महत्त्व पर जोर दिया, जो दिव्य चेतना के मार्ग पे चलकर शिष्य को अध्यात्मिक की ओर ले जायेंगे | 
बाबा मोहन राम जी ने अपनी अलौकिक विद्या से वामन रूप, नरसिंह रूप,बालक रूप और कृष्ण जैसे विभिन्न रूपों में दर्शन दिए है | उनके बारे में ऐसा कहा जाता है की उन्होंने कलि खोली की गुफा में एक बौने ब्राह्मण (वामन) के रूप में तपस्या की और नंदू जी को अपने दर्शन दिए और उनके वंशज आज भी पिछली सात पीढियों से मुख्य पुजारी और भक्त है |  
बाबा मोहन राम की गुफा भिवाड़ी में काली खोली के पहाड़ में स्थित है, वहां पे उनकी अखंड ज्योति मौजूद है, दोज और चेमाई दोज (6 महीने का त्यौहार) के दौरान भक्त बड़ी संख्या में यहाँ आते है | भक्त उनकी अखंड ज्योति में घी चढाते है, और वह स्थित चिरस्थायी धुनी को भोग और उपला (गाय के उपले) चढ़ाते हैं उनकी घी चढाने से भक्तो की सारी समस्याए दूर हो जाती है | पौराणिक कथाओ के अनुसार, मंदिर परिसर चमत्कार और दिव्या उर्जा से घिरा हुआ है,  कोई भी भक्त जो यहाँ आकर सेवा करता है, उनको भगवान का आशीर्वाद और लाभ प्राप्त होता है, जैसे कि मंदिर का फर्श साफ करना, गरीबो को भोजन दान करना, पक्षियों को पानी देना और जानवरों को विशेष रूप से गायों को खिलाना | ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पहले भक्त नंदू जी को मंदिर बनाने की आज्ञा दी थी जो मिलकपुर गाँव के थे | 


बाबा मोहनराम कैसे दिखते है (How look baba Mohanram?)

बाबा मोहनराम सोने का मुकुट पहनते है और उनके उपर एक मोर पंख लगा हुआ है | उनका चेहरा बहुत ही सुन्दर दीखता है जैसे की कृष्णा भगवान | वो मोती और रुद्राक्ष की माला पहनते है और  नीला घोडा उनकी सवारी है, इस नील घोड़े को भगवान शेष का अवतार माना जाता है | वो आमतौर पे ब्राह्मण जैसे दीखते है खडाऊ पहने | बाबा मोहन राम स्वर्ग से लाये सिंहासन पे काली खोली की गुफा में ध्यान लगाते है |

बाबा मोहन राम का इतिहास विस्तार से (Baba Mohan Ram history in hindi) 

कथा १: - आज से लगभग 375 वर्ष (1650 ईo) पूर्व की बात है, मिलकपुर के पहाड़ो पे एक नंदू नाम का ब्राह्मण गाय चराया करता था | वह भगवान श्री कृष्ण का परम भक्त था और सालावश का रहने वाला था, और हमेशा भगवान श्री कृष्ण के चरणों में हमेशा ध्यान लगाये रहता था | जैसे जैसे समय बीतता गया उसकी उसकी भक्ति भी बढती चली गयी और उसका सिर्फ भगवान की भक्ति करना और गाय चराना ही बस काम रह गया था | नंदू की इस अटूट भक्ति को देखकर भगवान कृष्ण ने उसे दर्शन देने की सोची, उसके बाद क्या था भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी लीला रच दी | उसके बाद रोज एक गाय आने लगी और भक्त नंदू की गयो में आकर मिल जाती और साथ-साथ चरने लगती, जिसका नंदू भी देखभाल कर देता | इस तरह धीरे-धीरे समय बीतता गया और वह गाय रोज आती और उसकी गायो में आकर चरने लगती, दिन भर गयो के साथ चरती और शाम को जब नंदू अपनी गयो को पहाड़ से उतार कर लाता तो वह गायो से अलग होकर पहाड़ के दूसरी तरफ चली जाती थी | ये सिलसिला लगभग एक वर्ष तक लगातार चलता रहा और नंदू ने भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया | एक दिन कि शाम को जब वह अपनी गायो को वापिस लाने लगा तो उसने देखा की वह गाय उसकी गाय से बचकर अलग जाने लगी, तो उसने सोचा की यह गाय रोजाना आकर मेरी गायो में आकर चरती है और शाम को अलग होकर पहाड़ के दूसरी तरफ चली जाती है | उसने निश्चय किया की आज देखता हूँ की ये गाय किसकी है और कहा से आती है | इसलिए वह उस गाय के पीछे – पीछे चलने लगे, आगे-आगे गाय और पीछे-पीछे भक्त नंदू, कुछ दूर जाकर उन्होंने देखा कि वह गाय एक गुफा के अंदर जा रही है | भक्त नंदू भी गाय के साथ-साथ गुफा के अंदर चला गया, उस गुफा के अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि वहा पे धुना है और उस पर एक बहुत ही तेजेस्वी और अलौकिक महात्मा तप कर रहे थे | महात्मा के तेज को देखकर नंदू जान गए कि यह जरुर कोई बहुत बड़े महात्मा है | नंदू ने जाकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया तो उसकी आवाज सुन के महात्मा ने अपने नेत्र खोले और मुस्कराते हुए प्रेम भरी आवाज में नंदू से बोले “आओ नंदू बैठो कैसे आना हुआ” | नंदू उन महात्मा के मुह से अपना नाम सुनकर हैरान हो गया और सोचने लगा की इन्हें कैसे मेरा नाम पता है | वह महात्मा के चरणों में सिर नवाकर उसके पास ही बैठ गया, कुछ देर मौन रहने के बाद बाबा बहुत ही मधुर स्वर में उसे सम्बोधित करते हुए बोलते है – “हे नंदू तुमने मेरी गाय को एक साल चराया है, अतः तुम्हारी एक साल की चराई बनती है मांगो तुम्हे क्या माँगना है, मै तुमसे बहुत खुश हूँ” | यह सुन कर नंदू भाव विभोकर हाथ जोड़ता बोला, नहीं बाबा मुझे कुछ नहीं माँगना है, आपके दर्शन हो गए ये ही क्या कम है, और रही बात चिराई कि तो जब मै इतनी गायो को चराता हूँ तो आपकी भी एक गाय चरा दी भला इसमें मुझ पर क्या जोर पड़ गया | 
बाबा जी ने मुस्कराते हुए फिर से कहा 
“नहीं नंदू तुम्हे मेरी गाय की चिराई तो लेनी ही पड़ेगी, अगर तुम नहीं भी लेना चाहते तो भी मै इसके बदले तुम्हे कुछ अवश्य देना चाहता हूँ”
और उसके बाद फिर बाबा जी ने कहा....
“हे नंदू, आज से तू मेरा परमभक्त बन गया है और मैं तुझे यह वरदान देता हूँ कि कोई भी दीन-दुखिया तेरे द्वार से खाली हाथ नहीं जाएगा, मेरा नाम लेकर अपने मुख से जिसको आशीर्वाद दे देगा वह अवश्य ही पूर्ण होगा यह मेरा वचन है | तेरे वंश में सात पीढ़ीयो तक मेरा कोई न कोई भक्त होता रहेगा, यानी तेरे वंश के उपर मेरी मैहर (कृपा) बनी रहेगी, और आज से तू मुझे बाबा मोहनराम के नाम से जपना, और आगे चल कर यही मेरा नाम भक्तों के दुख दूर करने वाला होगा"

mohan ram baba ki kahani

बाबा मोहन राम जी का प्रकट होकर भक्त कान्हा हो दर्शन देना 

कथा २: - प्रिय बाबा भक्तों ! आलुपुर ग्राम में एक गोरधन नम्बरदार रहते थे, उनका स्वभाव बड़ा तेज था। एक कान्हा नाम के पंडित जी उसके पास रहते थे जो उसकी गायो को चरा दिया करते थे, और घर का अन्य काम-काज भी कर दिया करते थे। पंडित जी बड़े धार्मिक विचार के थे वे बाबा मोहनराम की भक्ति हमेशा नेम से किया करते थे। नम्बरदार ने एक दिन पंडित जी को जमा के पैसे भरने को दिये, जमा के पैसे उस समय झिवाना कस्बे में भरे जाते थे, दिन ढल गया था और पैसे भरकर वापस आने में रात हो सकती थी, उस रास्ते में जंगल पड़ता था और उस समय जंगल में जंगली जानवरों की संख्या बहुत ज्यादा थी | पंडित जी डर की वजह से उसी समय जाने की बजाय दूसरे दिन सवेरे जाने को कह दिया । मगर नम्बरदार इस हुक्म अदूली के कारण भड़क उठा | उसने दण्डस्वरूप काँटों की बाड़ पर नंगे पैर और सर पर भारी पत्थर रखकर बाड़ खुदवाई । सर पर भारी वजन का पत्थर और नंगे पैर बाड़ खोदते वक्त उसके पैर लहुलुहान हो गए जिससे खून की धार बहने लगी | इतना दण्ड देने के बाद भी नम्बरदार का दिल नहीं भरा तो फिर वह उसके नंगे शरीर पर कोडे़ बरसाने लगा, कोड़ों की मार से उसका सारा का सारा शरीर छलनी हो गया और शरीर से खून बहने लगा | इतना सब करने के बाद नम्बरदार उसे उसी वक्त झिवाना जाने का आदेश दिया । पंडित जी ने जमा के पैसों को लेकर कराहता हुआ उसी वक्त झिवाना कस्बे की तरफ चल दिये । चोट के कारण दर्द के मारे उसका बुरा हाल था। पैरों में ज्यादा घाव हो जाने की वजह से उससे चला भी नहीं जा रहा था | क्योंकि समय बड़ा बलवान होता है, समय खराब होने की वजह से वह लाचार था, इस बेरहम समय ने तो राजा हरिशचन्द्र जैसे महादानियों को भंगी के घर पानी भरवा दिया था, समय खराब के कारण राजा नल जैसो ने दर-दर की ठोकर खाई, यह सब बिगड़ी समय का ही प्रभाव था, जिसकी वजह से यह बेचारा पंडित इतने निर्दयी का इतना अत्याचार सह रहा था, और अपने भाग्य को कोसता हुआ वह बेचारा जंगल से गुजरता हुआ जा रहा था। अचानक से उसके पैर ठिठक गए और उसने देखा कि आगे एक बालक उसका रास्ता रोके खड़ा है। बालक के सुन्दर चेहरे पर चन्द्रमा के जैसा तेज चमक रहा था, उसके सर की भूरी-भूरी लटाएँ पैरों तक लटक रही थी। उसके बालक के शरीर से सूर्य की किरण जैसा तेज निकल रहा था | इतने तेजस्वी बालक को न उसने कभी देखा था ना ही उसने कभी सुना था। पंडित जी उस बालक को कोई भूत प्रेत समझकर पीछे लौटने लगे, वह जैसे ही पीछे की तरफ मुड़े तो उसने देखा की उसके पीछे शेर खड़ा था। उसने डर कर दूसरी तरफ अपनी नजर घुमाई तो उसने देखा कि उसके सामने वह अलौकिक बच्चा और अगल-बगल व पीछे शेर खड़े हैं | पंडित डर की वजह से बेहोश होकर गिरने ही वाला था कि, उस दिव्य बालक की मीठी आवाज गूंज (सुनाई) उठी ।
“हे भक्त तुम घबरा मत, मै बाबा मोहनराम हूँ, मैंने तेरे दुखो का निवारण करने के लिए ही तुझे दर्शन दिया हूँ, तू चिंता मत कर, आज रात को ठीक 12 बजे साधू वेश धारण कर तेरे घर आऊंगा, तुम मेरा इंतजार करना”
इतना कहकर वह बलाकरूपी बाबा मोहनराम वही अन्त्रधयाँन हो गए | 
बाबा मोहनराम के इस रूप के दर्शन करके पंडित धन्य हो गया और खुशी के मारे उसका रोम-रोम खिल गया | पंडित जी शाम को खाना पीना खाकर वह बाबा मोहनराम का इंतजार करने लगे, रात के ठीक 12 बजे उसके दरवाजे पे हलकी सी दस्तक हुई, वह इंतजार में बैठे ही थे, तो उसने भागकर दरवाजा खोले तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा | सामने बाबा मोहनराम, माथे पे त्रिपुंड लगाये, हाथ में चिपटा कमण्डल थामे साक्षात रूप में खड़े थे। पंडित दौड़कर बाबा जी के चरणों में गिर पड़ा और फिर अंदर ले जाकर अपनी पत्नी के साथ बाबा जी की विधिवत पूजा अर्चना की | बाबा जी के सामने अत्यन्त दीन भावना से हाथ जोड़कर खड़े ब्राह्मण ब्राह्मणी बोले:
“हे बाबा आज अपने हमें साक्षात रूप में दर्शन देकर धन्य कर दिया, बड़े बड़े ऋषि मुनियों को आपके दर्शन दुर्लभ है, बाबाजी अपने हम पर अपार कृपा की है, हम तो इतने अज्ञानी आपकी पूजा पाठ भी सही तरीके से करना जानते है”
पंडित के इस भक्तिभाव को देखकर बाबा ने उसके उपर हाथ फेरते हुए कहा: 
“हे भक्त, मेरा पूजा पाठ ही किया जाये ये जरुरी नहीं, मै तो प्रेम का भूखा हूँ और प्रेम और श्रद्धा से जो भी मुझे याद करता है, मै उसको अवश्य ही दर्शन देता हूँ, इसी प्रेम के अधीन होकर मैंने त्रेता युग में राम रूप में सबरी के जूठे बेर खाए थे, इसी प्रेम के अधीन होकर मैंने द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में दुर्योधन का राजसी भोजन छोड़कर विदुर के घर का रुखा साग खाया था, और इसी प्रेम के वश होकर मैंने अर्जुन का रथ हाँका था, इसी प्रेम के कारण सिरसागढ़ में भात भरा था, और इसी ही प्रेम के अधीन होकर ही मैंने तुम्हे साक्षात रूप में दर्शन दिए हैं | हे भक्त बड़े बड़े ऋषि-मुनि भी कठिन और घोर तपस्या करके भी मेरे दर्शन नहीं पा सके, जबकि तुम जैसे कुछ मामूली भक्तो ने मुझे प्रेम के कारण अपने वश में कर लिया | अत: सच्चा प्रेम पूजा-पाठ से कही ज्यादा फलदायक होता है, तेरे मन में मेरे प्रति अगाध प्रेम है इसी वजह से मैंने साक्षात दर्शन तुम्हे दिए हैं”

baba mohan ram ki kahani

बाबा मोहनराम ने पंडित जी को बताया की, इस पहाड़ पे एक वट वृक्ष है तुम उसके निचे खोदकर देखना, वहाँ तुम्हे पंचमुखी शंख सिंहासन, चरझा खडाऊ, घड़ावड और सालागराम की मूर्ति मिलेगी | इन पांचो को तुम अपने घर ला के पूजा-पाठ करना | ये सब बाते कहकर बाबा अंतरध्यान हो गये |
पंडित जी सबेरे उठ कर नित्य क्रिया से निपटकर बताये गए पहाड़ पर जाकर उस वट वृक्ष को तलाशना शुरू कर दिया | सुबह से शाम हो गया लेकिन बाबा की बताई हुई जगह नहीं मिली और अँधेरा होने लगा तो परेशान होकर घर वापिस लौट आया | घर आकर उसने उसी चिंता में खाना-पीना भी नहीं खाया और चारपाई पे करवट बदलता रहा | रात्रि के भोर में उसको नीद आ गयी और सोते समय उसको एक सपना आया, सपने में देखता है कि बाबा जी ने आकर उसे जगाया और अपने पीछे-पीछे चलने को कहा, बाबा और वह पे चलते चलते उस स्थान पर पहुचते है जहा वह वट वृक्ष था, फिर बाबा ने आदेश दिया की इस वृक्ष के निचे खुदाई करो, जैसे ही वो खोदने को तैयार होता है की उसकी नीद खुल जाती है और सपना टूट जाता है | जागने के बाद उसने इधर-उधर देखा तो पाया की वो अपने घर पर लेटा है और उसे महसूस हुआ की वो सपना देख रहा था | 
उसे वो सपना पूरा याद था तो उसने सपने में जो रास्ता देखा था उसी रास्ते पर चलकर उस वट वृक्ष के निचे पहुँच गया | फिर उसने वहां जमीन की खुदाई शुरू की तो उसने वहाँ जो देखा, उसको देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा | क्युकी वहाँ बाबा की बताई हुई पांचो अमूल्य चीजे मौजूद थी | पंडित ने उन पांचो वस्तुवो को अपने घर लाया और रोज नियमित विधिवत उनकी पूजा करने लगा और सुबह शाम कई कई घंटे हवन करने लगा | इसको लेकर उसको पत्नी उससे नाराज हो गयी की सुबह शाम दोनों वक्त इतना सारा घी बेकार में ही फुकता है | पंडित ने अपनी पत्नी को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन वो अपनी जिद पे अडिग रही | जैसा की सबको पता है संसार में त्रिया हठ, बाल हठ और राज हठ, ये तीनो हठ मशहूर है, जब ये तीनो हठ अपनी हठ पे अड़ जाये तो संसार की कोई भी ताकत इन्हें मना नहीं सकती | अतः पत्नी अपनी हठ पे अडिग रही और फैसला कर लिया की अपने पति से इस हवन को छुड़वा कर ही रहेगी। इसलिए उसने धुनें को उखाड़ फेकने का मन बना लिया और इसके लिए जैसे ही धुनें की तरफ आगे बढ़ी तो उसके उपर शेर बैठा देखकर घबरा गयी और उसके मुँह से भय के कारण चीख निकल गयी और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी | उसकी ये चीख सुनकर पंडित भाग कर धुनें के पास आये तो उन्होंने देखा की उनकी पत्नी बेहोश पड़ी है | थोड़ी देर बाद जब बेहोशी टूटी तो उसने पंडित जी को शेर के बारे में बताया | यह सब बाबा मोहनराम की लीला थी, पंडित समझ गया और उसके आँखों से प्रेम के आंसू छलक आये | फिर पंडित ने अपनी पत्नी की बाबा मोहनराम की महिमा को सुनाने लगा, महिमा सुना रहा था तभी एक अद्भुत आवाज गूंजी...
“ब्राह्मण तुम इन पांच अद्भुत वस्तुवो को सालहावास ठाकुर द्वारे में पहुंचा दो”
पंडित जी ने बाबा की आज्ञा मानकर उन पांचों अदभूत को सालहावाश ठाकुरद्वारे में पहुंचा दिया | प्रिय भक्तो गांव सालाहावाश धारूहेडा के पास दिल्ली जयपुर रोड़ पर पड़ता है, ये पांचो अद्भुत वस्तुए आज भी वहाँ मौजूद है, वह जाकर आप बाबाजी के इन पांच रत्नों के दर्शन कर सकते है | 


भक्त प्रेमदास का मरे हुए हिरण को जिंदा करना और अंग्रेज अधिकारी का बाबा मोहनराम का भक्त बनना !!

कथा ३: - प्रिय बाबा भक्तो, प्रेमदास शैंदपुर गाँव में रहते थे और पंडित जी के समकालीन थे | प्रेमदास जी बाबा मोहनराम के सच्चे भक्त थे और गाये चराया करते थे | कुछ उज्जड गाँव वाले , जिस प्याऊ में उनकी गाये पानी पिया करती थी उसमे गोबर घोल दिया करते थे | इससे परेशान होकर भक्त प्रेमदास शैंदपुर गाँव छोड़कर अपनी गायो को साल्हावास ले आया और यही गायो को चराने लगा | उस समय वहां पे अंग्रेजो का शासन था और एक अंग्रेज अधिकारी शिकार खेलने के उद्देश्य से आ गया और उसने के हिरण को गोली से मार गिराया | फिर अंग्रेज ने मारे हुए हिरण को अपनी जीप में डालने के लिए ग्वालो से मदद मांगी, सभी ग्वालो ने प्रेमदास की तरफ इशारा करते हुए कहा कियाही इसे जीप में डलवा सकता है | अब अंग्रेज अधिकारी ने प्रेमदास से मदद माँगा | भक्त प्रेमदास ने हिरण के पास जाकर उसको एक संटी मारी, संटी लगते ही हिरण जीवित हो कर भाग गया, यह चमत्कार देखकर अंग्रेज बहुत प्रभावित हुआ और उसके पैरो में गिरकर कहने लगा !!
“हे भक्त मैंने अपने इस अनमोल जीवन को यु ही बेकार कर दिया, आप धन्य है जो प्रभु के इतने निकट है, मै अपने द्वारा किये गए गुनाहों की मांफी मागता हूँ और कृपया मुझे अपना शिष्य बनाये ताकि मेरा भी उद्धार हो सके”
प्रेमदास ने उस अंग्रेज अधिकारी को बाबा मोहनराम की महिमा सुनाई, इस प्रकार वह अंग्रेज अधिकारी बाबा मोहनराम का भक्त बन गया और उसने कुछ जमीन वह गाय चारे के लिए छोड़ दी | यह गौचारे की जमीन आज भी मौजूद है और जहाँ आज भी गाये चरती है | आज भी उस अंग्रेज अधिकारी को बाबा मोहनराम के भक्त के रूप में याद किया जाता है | 

बाबा मोहनराम के घोड़े को पत्थर का बनना और पहाड़ को मोम का बन जाना !!

कथा ४: - प्रिय भक्तजनों, जब बाबा मोहनराम ने नंदू को साक्षात दिए तो उसी दिन से नंदू अपना पूरा ध्यान बाबा के चरणों में लगा दिया | गायो को चराता और वही पहाड़ पे किसी पत्थर पर बैठ के बाबा के भजन गाता और उसी में लींन हो जाता | धीरे-धीरे समय बीतता गया और उसे बाबा जी के दर्शन की तीव्र लालसा पैदा हो गयी | अब तो नंदू दिन रात यही माला रटने लगा की हे बाबा मुझे दर्शन देकर मेरे आत्मा की प्यास बुझाओ | जब इसी लालसा में कई वर्ष बीत गए और तब भी बाबा मोहनराम ने भक्त नंदू को दर्शन नहीं दिए | इसीलिए भक्त नंदू को अचानक क्रोध आ गया (यह भी बाबा जी की लीला थी) और गुस्से में बोला 
“हे बाबा मोहन क्या तुम पत्थर का हो गया जो दर्शन ही नहीं दे रहा है”
नंदू के इतना कहते ही उसने देखा की बाबा मोहनराम जी एक नीले घोड़े पे बैठकर आ रहे है, तभी पहाड़ मोम का बन गया था, घोडा कुछ कदम चला तो उसके पैर उस मोम से बने पहाड़ में कीचड़ की तरह फस रहे थे | और कुछ कदम चलने के बाद बाबा जी घोडा सहित अन्तध्र्यान हो गए, मगर पहाड़ में घोड़े के खुर बने रह गए जो पहाड़ पे आज भी मौजूद है | प्रिय बाबा भक्तो खोली में ज्योत जलाने ले बाद इस पवित्र खुरो के दर्शन और इसमें भरे पानी को श्रध्दा से अपनी आँखों पे जरुर लगाये, ऐसा करने से भक्तो के अंदर के तमाम तरह के विकार खत्म हो जाते है | बोलो बाबा मोहनराम की जय 

baba mohan ram in hindi


बाबा मोहनराम का रकमसिंह की जगह खुद ड्यूटी करना...

भक्तो उत्तर प्रदेश राज्य के मुज्जफरनगर जिले में भूमा खेड़ी एक गाँव है, वहाँ रहने वाले चौ0 कालेराम व श्रीमति हुक्मा देवी के घर एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने राकमसिंह रखा | रकमसिंह के तीन भाई और बहन भी है, राकमसिंह की जल्दी ही दिल्ली डी0डी0ए0 में नौकरी लग गयी | रकमसिंह बचपन से ही बाबा मोहनराम जी की भक्ति करने लग गया था क्युकी ये धार्मिक संस्कार उसको विरासत में ही मिले थे क्युकी उसके माता पिता चौ0 कालेराम व श्रीमति हुक्मा देवी बाबा मोहनराम के परम भक्त थे | रकमसिंह बचपन में कई बार अपने माता-पिता के साथ काली खोली जाकर बाबा मोहनराम जी के दर्शन करके आया था | उसका बाबा जी के चरणों में हमेशा ध्यान लगा रहता था, यहाँ तक की जब वह ड्यूटी पर होता था तब भी बैठकर बाबा मोहनराम के भजन गाने लगता था और उनके ध्यान में मगन हो जाता | जब उनके साथी उससे इस विषय में कुछ कहते तो वह अपने साथियों को बाबा जी की महिमा सुनाने लगता था | 
एक दिन की बात है की जब वह ड्यूटी पे था तो उसका एक साथी मशीन द्वारा पार्क की घास काट रहा था, मशीन में जुड़ा बैल कुछ धीरे-धीरे चल रहा था | काम ज्यादा था तो उसको जल्दी खत्म भी करना था और समय कम था | तो उस साथी ने उससे बैल हाकने की विनती की, जिससे वह मानकर बैल हांकने में मदद करने लगा | बैल हांकते समय रकमसिंह ने बैल को दो डंडी मारी जिससे बैल के शरीर पे डंडी के निशान पड गयी | डंडी के निशान बैल के शारीर पे देख कर उसके आँखों में आँशु आ गए और और अपने आप को दिक्कारने लगा | वह ड्यूटी खत्म करके घर चला गया, और घर पहुच कर उसने खाना-पीना भी नहीं खाया, यही सोचते-सोचते की उसने उस पशु को इतनी जोर से डंडी मारी, उसको रात भर नीद भी नहीं आई, उसका दिल बिलकुल उचाट हो गया | और इसकी वजह से वह तीन दिन ड्यूटी भी नहीं गया | 
तीन दिन बाद जब वह ड्यूटी पे गया तो ये देख कर दंग रह गया की उसकी तीन की कोई गैर-हाजिरी नहीं है और उसके विभाग के एस0डी0ओ0 ने उसे बताया कि तुम तीन से लगातार ड्यूटी आ रहे हो | उसके ही विभाग के चौधरी ने भी इस बात की पुष्टि की और स्टोर कीपर ने सबके सामने बताया की तुम पहले की तरह तीनो दिन लगातार ड्यूटी आये हो और रोज सुबह काम करने के लिए औजारों को तुम ले जाते थे और फिर शाम को खुद ही वापिस जमा करा जाते थे | 
अब तो सबकी बात सुनकर रकमसिंह सोच में पड़ गया की, मै तीन दिन से ड्यूटी पे नहीं आ रहा हूँ लेकिन यहाँ मै लगातार ड्यूटी भी दे रहा हूँ, ये कैसे हो सकता है | घर पर भी मै और ड्यूटी पर भी मै, जब मै घर पर था तो मेरी जगह किसने ड्यूटी दी? यानि की इसका मतलब यह हुआ कि मैं जब तीन दिन घर पर रहा तो मेरी जगह बाबा मोहन राम ने मेरी डयूटी दी | यह ख्याल आते ही वह भाव विभोर गया और उसकी आँखों से प्रेम के आँसू छलछला आये | उसने सोचा बाबा मोहनराम जब मेरे रूप में ड्यूटी दे सकते है तो मुझे भी अब सब कुछ त्याग कर उनकी शरण में चला जाना चाहिए और वह उसी समय ड्यूटी छोड़कर काली खोली वाले बाबा जी के शरण में आ गए और आज भी खोली वाले के चरणों में रह रहे है | 
इन्होने अपनी मेहनत से और बाबा की कृपा से दिल्ली यू0पी0 हरियाणा व राजस्थान में अनेकों मन्दिर बनवाए हैं। जिनमें आलुपुर व दिल्ली में नाथुपुर मुख्य मंदिर हैं। ये मंदिर देखने योग्य है और इनकी सादगी व चेहरे के तेज के आगे भक्तो का सर मस्तक अपने आप झुक जाता है | इन्होने अपने श्रीमुख से एक एक बार जो वाकया निकल दिया वो हर हाल में पूर्ण होता है और इनके सामने पहुचते ही नास्तिक से नास्तिक भी बाबा मोहन राम में विश्वास करने पर मजबूर हो जाता है | इनकी आंखों में अपने शिष्यों के प्रति जो अपनापन झलकता है, उसका वर्णन करना बड़ा मुश्किल है | उनके चेहरे को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सामने खुद बाबा मोहन राम जी साक्षात रूप में बैठे हैं | इनके शिष्यों की असल संख्या के बारे में अनुमान लगा पाना असंभव है | हजारो दुखिया इनके वचन और बाबा जी की कृपा से दुखो और संकटो से छुटकारा पा चुके है | बाबा की दौज पर आलुपर मन्दिर में और बाकी के दिनों में नाथुपर मन्दिर पर इनके दर्शन करके धन्य हो सकते हैं | अब इनको भक्तजन रकमसिंह नहीं कहते बल्कि प्यार और श्रध्दा से बाबा हरिनाथ के नाम से जानते है | 

भक्त नेतराम जी के सीने में भगवान श्रीकृष्ण का मुकुट दिखना

बाबा मोहनराम के भक्त शिरोमणि नेतराम जी का नाम प्रमुख भक्तो में सम्मान के साथ लिया जाता है | भक्त नेतराम खोली वाले के परम भक्त थे और इनके श्रीमुख से निकला हर शब्द अटल सत्य होता था | एक बार की बात है की बक्त चेतराम बहुत ज्यादा ही बीमार पड़ गए थे, उनका बहुत जगह इलाज करवाया मगर वे ठीक होने की बजाय ज्यादा बीमार होते चले गए | अंत में उन्हें गुडगाँव के अस्पताल में भर्ती कर दिया गया | वहाँ डॉक्टरो ने उनका पूरी तरह से जाँच किया लेकिन कोई रोग के लक्षण नहीं मिले | फिर नेतराम जी का एक्सरा लिया गया और जब सिविल सर्जन ने उनका एक्सरा देखा तो वह हैरान रह गए | भक्तजी के एक्सरा में भगवान श्रीकृष्ण जी का मुकुट साफ दिखाई दे रहा था, जिस तरह से हनुमानजी ने भरी सभा में अपना सीना चीरकर भगवान राम जी की तस्वीर दिखा दी थी | ठीक इसी तरह नेतराम जी के दिल में हमेशा बाबा मोहनराम समाये रहते थे जिनका मुकुट एक्सरा में आया था | 
सिविल सर्जन, नेतराम जी के पैरो में गिरकर गिड़गिड़ाता हुआ बोला, 
“हे महाराज मै तो आपको एक आम रोगी समझ रहा था, आप तो महान पुरुष है, आपके दिल में श्रीकृष्ण जी हमेशा निवास करते है, जिसका प्रमाण एक्सरे में आये मुकुट ने दिया है, मै आपको कैसे ठीक कर सकता हूँ, आप तो खुद हर रोगी को ठीक करने में सक्षम है | उनके शिष्य और परिवार वाले नेतराम जी को घर ले आये और मंदिर में आकर उन्होंने बाबा की धुनें की भभूति ली और चरणामृत पिया और जिसे पिने का बाद वे तुरन्त ही ठीक हो गए, सभी बाबा जी के ये चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गए | 
प्रिय भक्तो, भक्त नेतराम ने पूरी जिंदगी को बाबा के नाम पे अर्पण कर दिया और आज इनके सैकड़ो शिष्य है जो बाबा की कृपा से दुखियारो के दुःख दूर करते है | भक्त नेतराम अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में भर्ती थे, इधर मिलकपुर मंदिर में उनके सैकड़ो जन कीर्तन कर रहे थे और अनेको भक्त बैठकर अपने गुरु नेतराम जी के बीमारी के विषय में चर्चा कर रहे थे | कुछ कह रहे थे की भक्त जी ठीक हो जायेंगे और कुछ कह रहे थे की भक्त जी अब हमें छोड़ के जाने वाले है क्युकी आना-जाना संसार का नियम है, जो इस दुनिया में आया है उसे एक ना एक दिन अवश्य जाना ही पड़ेगा | यही सब बाते भक्तो के बीच चल ही रही थी की तभी बाबा के एक प्रसिद्ध भक्त चन्दी टीकरी वाले को बहुत जोर की मैंहर हुई और वह गरजता हुआ सा बोला, 
“अरे भक्तो मंदिर की ध्वजा झुका दो आज मेरा भक्त मुझ में सदा-सदा के लिए लीन हो गया है”
यह सुनते ही सभी समझ गए की हमारे हृदय सम्राट भक्त शिरोमणि नेतराम जी का स्वर्गवास हो गया है | इसके बाद मंदिर की सारी ध्वजा झुका दी गयी | भक्त जी का पार्थिव शारीर दिन निकलने से पहले मंदिर में आ गया, उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखो लोग उमड़ पड़े | आज भले ही चाहे भक्त नेतराम जी हमारे बीच में नहीं है मगर जबतक बाबा मोहनराम जी का नाम इस दुनिया में रहेगा तब तक भक्त नेतराम जी को भी उनके प्रमुख भक्तो के रूप में श्रध्दा के साथ याद किया जायेगा | 
तो दोस्तों अगर आप भी बाबा मोहनराम जी के भक्त हो तो खोली वाले बाबा के दर्शन करने जरुर जाये और कमेंट में बाबा जी का जयकारा लगाना ना भूले
! बोलो बाबा मोहनराम जी की जय !


Tags,

mohan ram baba, mohan ram baba photo, mohan ram baba mandir, mohan ram baba image, mohan ram baba bhajan, mohan ram baba ki photo, mohan ram baba ki aarti, mohan ram baba photos, mohan ram baba history in hindi, mohan ram baba rajasthan, mohan ram baba kholi wale, mohan ram baba ka mandir, mohan ram baba ki kahani, mohan ram baba wiki, baba mohan ram bhiwadi, baba mohan ram ke bhajan, baba mohan ram, baba mohan ram photo, baba mohan ram mandir, jai baba mohan ram, baba mohan ram image, baba mohan ram history in hindi, baba mohan ram gurjar, milakpur baba mohan ram, jai baba mohan ram ki, baba mohan ram ki kahani, baba mohan ram wiki, baba mohan ram in hindi, baba mohan ram history, who is baba mohan ram, baba mohan ram temple, bhiwadi rajasthan

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Close Menu