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भारतीय समाज की वह समस्या जिसके बारे में कोई बात नहीं करता ! | Problem in Indian Society That No one talks about ! |

हैलो मित्रों!

चाय बेचने वाला, पंचर रिपेयर करने वाला, कूड़ा बीनने वाला, बारडांसर और वेटर। ये कुछ पेशे और नौकरी है जो कुछ लोगों के पास है।

लेकिन हमारे देश में अक्सर इन शब्दों का इस्तेमाल अपमान (गाली) के तौर पर किया जाता है।

आज के इस ब्लॉग में, मैं सामाजिक बुराई के बारे में बात करना चाहता हूं। वह क्लासिज्म है। सही पढ़ा  आपने जातिवाद नहीं, वर्गवाद।
Photo courtesy of: Google Images

जातिवाद तब होता है जब किसी जाति के साथ भेदभाव किया जाता है। या अलग-अलग जातियों के लोगों के साथ अलग व्यवहार करना। और उनके खिलाफ नफरत फैला फैलाना।

वर्गवाद लोगों के साथ उनके सामाजिक वर्ग के आधार पर भेदभाव करना है।

ये कुछ पर्सनल कमेंट है जो फेमस लोगो द्वारा फेमस लोगो के बारे में कही है .......

 "अगर नरेंद्र मोदी चाय बेचना चाहते हैं, हम उसके लिए जगह बना देंगे "- मणिशंकर अय्यर

 "मुझसे पूछो सोनिया गांधी का काम क्या थी, वह एक वेश्या थी" - सुब्र्यमनियम स्वामी 

क्लासिज्म के कई प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

2019 में बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को पंचर रिपेयर करने वाला बताया। 2014 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी को चाय बेचने वाला बताया, और कहा कि चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री नहीं हो सकता।

हाल ही में एक और मामला ट्विटर पर देखने को मिला, ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के साथ। जुबैर ने टाइम्स नाउ के एंकर सुशांत सिन्हा के एक पुराने ट्वीट पर प्रकाश डाला, जिसमें दिखाया कि उनका पहले एक और दृष्टिकोण था और अब पूरी तरह से अलग दृष्टिकोण है। उसे गिरगिट कहते हैं और वह हर समय रंग बदलता रहता है। 

जवाब में सुशांत सिन्हा ने उन्हें पंचर-वाला कहा। ऐसा नहीं है की जुबैर के पूर्वज पंक्चर बनाते थे। लेकिन जुबैर मुसलमान है, मुसलमानों के अपमान के रूप में 'पंचर-वाला' शब्द का उपयोग करना केवल क्लासिस्ट नहीं है, यह हमारे देश में एक धार्मिक स्टीरियोटाइप (रूढ़िवादी) भी बन गया है।

अक्सर सोशल मीडिया पर धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले ट्रोलर। मुसलमानों के खिलाफ ऐसी भाषा का प्रयोग करते है। ईसाइयों को 'चावल की बोरी' कह कर बुलाना और मुसलमान को 'पंचर-वाला' कह कर। हर ईसाई एक मिशनरी नहीं है जो दूसरों को बदलने की कोशिश कर रहा है। न ही हर मुसलमान का काम पंक्चर ठीक करना है। इनका इस्तेमाल केवल लोगों का अपमान करने और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने के लिए किया जाता है।

हमारे देश में हर तरह के पेशे में मुसलमान शामिल हैं, रेस्तरां में रसोइये, सैनिक, वैज्ञानिक, शिक्षक, नाई, बढ़ई, पत्रकार। नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान और आमिर खान जैसे जाने-माने अभिनेता, मोहम्मद रफी, एआर रहमान जैसे प्रसिद्ध गायक, भारत के अंटार्कटिका मैन डॉ सैयद जहूर कासिम। उन्होंने अंटार्कटिका के पहले अभियान का नेतृत्व किया। मशहूर बिजनेसमैन और परोपकारी आसिम प्रेमजिक और जाहिर है, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, भारत का मिसाइल मैन हमारे पूर्व राष्ट्रपति। यही बात हर धर्म में है। बेकार स्टीरियोटाइप बनाने से कुछ हासिल नहीं होता है। लेकिन अब ब्लॉग के विषय पर आते हैं। "वर्गवाद"।

भले ही कोई पंचर रिपेयर करने वाला हो, इसमें गलत क्या है? 

दोस्तों, मैं यहां एक और दिलचस्प उदाहरण का उपयोग करना चाहूंगा। यह कुछ दिनों पहले हुआ था। हाल ही में सरकार ने एक नई ट्रेन शुरू की है "रामायण एक्सप्रेस"। यह रामायण से जुड़े 15 स्थान पे लेकर जाता है। इसमें एक जगह अयोध्या भी है ।

लेकिन इस ट्रेन लॉन्च के बारे में सुनकर, एक साधु (ऋषि) यह कहने के लिए आगे आया कि वह इस ट्रेन को चलने नहीं देंगे। और वह जाकर ट्रेन को रोकने के लिए पटरियों पर बैठ जायेंगे । क्या था मुद्दा? उन्होंने कहा कि वह हिंदू धर्म की रक्षा करना चाहते हैं। 
रामायण एक्सप्रेस के लॉन्च से हिंदू धर्म को कैसे खतरा हुआ? यह बहुत दिलचस्प है।

मुद्दा यह था कि, ट्रेन में वेटर का ड्रेस कोड भगवा था। और इन साधुओं का मानना ​​था कि ऐसा ड्रेस कोड वेटर की नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं है। यह उनके धर्म का अपमान है अगर वेटर्स भगवा पोशाक पहनेगा। वेटर क्या करते हैं? वे लोगों को खाना परोसते हैं। वे किसी का खाना नहीं चुराते हैं। यह एक प्रमुख वर्गवादी दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
धर्म के इन रक्षकों को कोई दिक्कत नहीं होती है जब एक आतंकी आरोपी प्रज्ञा ठाकुर, भगवा पोशाक पहनकर घुमती है और खुद को हिंदू कहती है। तब उनके हिंदू धर्म को कोई खतरा नहीं है। सचमुच, एक राजनेता जो एक आतंकवादी आरोपी है, ऐसी बातें करता है और उन्हें इससे कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब एक वेटर, एक ईमानदार वेटर जो सिर्फ अपना काम कर रहा है, आजीविका कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, जब वह अपना काम करता है तो धर्म खतरे में आ जाता है।

क्यों?

क्योंकि समाज, वेटर की नौकरी को निचले स्तर (low level) पर देखता है। विडंबना यह है कि इस तरह के वर्गवादी रवैये को फैलाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया जाता है। अगर धर्म के इन रक्षकों ने वास्तव में अपने धर्म को पढ़ा होता, वे जानते होंगे धार्मिक ग्रंथ वास्तव में क्या कहते हैं।

भागवत गीता में, कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सर्वोच्च भक्त (योगी), प्रत्येक जीवित प्राणी को समानता की नजर से देखता है।
स्वामी विवेकानंद ने हम सभी में ईश्वर (अहम् ब्रह्माष्मी त्वं च !) के होने की अवधारणा के बारे में बात की। लेकिन ये इन लोगो को कहा समझ में आता हैं।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था:

"for great men, religion is a way of making friends; small people make religion a fighting tool."

2017 में, कांग्रेस के स्वयंसेवकों द्वारा चलाया गया एक ट्विटर हैंडल एक मेमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पोस्ट किया।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को मोदी को कहते हुए दिखा रहे हैं की "तुम चाय बेच" | कांग्रेस ने इस मामले से दूरी बना ली थी। लेकिन बीजेपी की तरफ से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा, पोस्ट किया कि यह एक क्लासिस्ट टिप्पणी है, और गरीबों के साथ भेदभाव है। यह बिल्कुल सही है।

लेकिन कुछ महीने बाद, भाजपा नेता अपने समर्थकों की वर्गवादी मानसिकता को देखना भूल जाते हैं।

कुछ महीने बाद ट्विटर पर #BarDancerSoniaGandhi ट्रेंड चल रहा था। यह कुछ ऐसा है जो सोनिया गांधी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है लोग उन्हें बार डांसर कहते हैं। पहली बात तो यह कि सोनिया गांधी ने कभी बार डांसर के तौर पर काम नहीं किया। वह एक इतालवी (Italian) है। और उनका नाम एंटोनिया अल्बिना माइनो (Antonia ALbina Maino) था। उनके पिता एक इतालवी (Italian) हाउस बिल्डर थे। 1965 में वह अपनी पढ़ाई के लिए यूके गई, वहा उन्होंने एक रेस्तरां में काम किया था। और कहा जाता है कि उन्होंने उस रेस्टोरेंट में अक्सर शराब भी परोसती थी । कुछ लोग इसको बढ़ा चढ़ाकर कहते हैं कि उसने शराब परोसी थी तो वह एक बार में काम करती थी। इसे और भी बढ़ा-चढ़ाकर कहते है कि वह एक बार डांसर थी।

यह वेटर का काम उन्होंने तब किया था, जब वह एक छात्रा थी, एक पार्ट टाइम जॉब की तरह , जो बहुत ही आम बात है। लेकिन अगर कोई वेटर का काम कर रहा है, इसमें गलत क्या है?

नरेंद्र मोदी चाहे चाय बेचें या सोनिया गांधी शराब बेचें, या रामायण एक्सप्रेस में वेटर खाना परोसते हैं, इसके लिए किसी का गली देना, मजाक उड़ाना या अपमान करना वर्गवाद (Classist) है। यह वर्गवादी (Classist) रवैये को दर्शाता है। 

यह रवैया समाज को कैसे प्रभावित करता है? यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।

दोस्तों हमें पहले यह पता लगाना होगा हम रोजमर्रा की जिंदगी में हम कितना क्लासिस्ट टिप्पणियों का उपयोग करते है । हम अक्सर मजाक में अपने दोस्तों को 'भंगी', 'कमीना' या 'कंजर' कहकर बुलाते हैं। जब हमें किसी के कपड़ों का मजाक उड़ाना होता हैं, तो हम कहते हैं कि क्या ये झुग्गी-झोपड़ी वाले कपडे पहन रखा है। हम सफाई कर्मचारियों को कूड़े वाला कह के बुलाते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को यह कहकर नसीहत देते हैं कि अगर वे अच्छी तरह से पढ़ाई नहीं करेगा तो वे कचरा बीनने वाले बन जाएंगा।

हम इसे पसंद करते हैं की सुरक्षा गार्ड, नौकरानी, ​​नाई, एयर होस्टेस, कूरियर डिलीवरी बॉय, हमें सर या मैडम कह के बुलाये। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं? की हम उन्हें सर या मैडम कहकर बुलाये? क्या यह अकल्पनीय नहीं लगता सुनने में? बहुत से लोग उन्हें नमस्कार भी नहीं करते हैं। जहां वे हाय या हैलो कहते हैं दूसरी ओर लोग बस उन्हें अनदेखा कर देते हैं। क्योंकि लोग उन्हें निचले तबके का समझते हैं। 

क्या आप जानते हैं कि एक वर्गवादी समाज (Clasist Sociaty) में क्या अनोखा होता है? इस समाज में रहने वाले लोग अपने से हीन (निचे) लोगों को घृणा की दृष्टि से देखते है और उनकी उपेक्षा करते है | लेकिन उनके सामने जो वरिष्ठ (बड़े) लोग हैं, हाथ जोड़ते है और दास बन जाते है ।

"गरीब लोगो का एक प्रॉब्लम होता है, की हमेशा स्माइल करते रहना पड़ता है, क्या तुमने कभी किसी  गरीब व्यक्ति को रुड (Rude) होते देखा है?" 

लोग इस समाज में अपने आपको एक विशेष स्थान पे फिट कर लेते है, अपने से नीचे के लोगों के साथ बातचीत करते समय सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स देखा जाता है, और अपने से ऊपर वालों के सामने हीन भावना आ जाती है।

इसे लेकर नेटफ्लिक्स पर एक बेहतरीन फिल्म है "The Plateform"। समय मिलने पर इसे देखें।

ऐसी चीजों से देश का विकास और तरक्की बुरी तरह प्रभावित होता है| खुद ही सोच के देखना जब देश में इन पेशों के एक वर्ग को इतना नीचा माना जाएगा, तो कोई इसको नहीं करना चाहेगा। तो कोई उन कामो को ढ़ंग से नहीं करेगा । इन व्यवसायों को समाज से सम्मान नहीं मिलेगा। उन्हें कम वेतन मिलेगा और उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाएगा। तो इसलिए वे आधे-अधूरे मन से काम करेंगे।

अगर हमारे देश के शहरों में उचित शहरी नियोजन (City Planning) नहीं है, अच्छे फुटपाथ नहीं है, अच्छी सड़क नहीं है, सीवेज की अच्छी व्यवस्था नहीं है, सफाई की उचित व्यवस्था नहीं है। इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए?

इसके बारे में सोचो और कमेंट करके बताये |

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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